शुक्रवार, 1 मार्च 2013

युद्ध और संग्राम.

अस्त्र-शस्त्र हाथ में,
सेनाये आमने-सामने,
हार-जीत का निर्णय करने,
पर अंत नहीं जानते.

कट के गिरते अंग-अंग.
मानवता होती खंड-खंड,
बहती है लहू की धरा,
हिंसा ने प्रेम को मारा.

रुकते नहीं है हाथ किसी के,
शस्त्रों के आगे आता जो,
गिरता है वही ज़मीन पे.

आँखों में हिंसा की ज्वाला,
दिल में है बदले के भाव,
आँखों पे पर्दा पड़ा है,
यह है मन का भटकाव.

युद्ध ख़त्म हो जाता है,
जीत होती है बल की,
गूढ़ सत्य कुछ और ही है,
मौत होती है कल की.

आंसुओं की बाढ़ में,
बह गई सारी खुशियाँ,
चीख चीख ये कहती है,
ये है शमशान की दुनिया.

मौत का खेल तो खेल लिया,
रक्त-रंजित कर दिया धरा को,
हे इंसान! अब कैसे जीवित,
करेगा इस मृत वसुंधरा को.